प्राचीनतम जल स्त्रोत के मुख्य साधन कुओं की मिट रही पहचान
न्यूज़ डेस्क: मधुबनी
एक तरफ़ जहां राज्य सरकार जल जीवन हरियाली और जल संरक्षण को लेकर तमाम बड़े-बड़े दावे करते हुए करोड़ों रुपए पानी में बहा रही है वहीं दुसरी तरफ हकीकत की पड़ताल कुछ अलग ही तस्वीर बयां करती है। दुनियां के प्राचीनतम जल स्त्रोतों में शुमार और समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा का रूप धरे जीवन को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान निभाने वाले कुओं का अस्तित्व अब संकट में आ चुका है। एक जमाना था जब किताबों में पनघट शब्द सुनते ही मन में तरह-तरह की सुहानी तस्वीरें उमड़ने लगती थी। पनघट पर पानी भरने को आती घुंघट के पीछे की सुंदरता तो वहीं रस्सा कसी कर दम-खम दिखा बाल्टी से पानी निकालते वो लोग। कितना सुंदर जमावड़ा लगा करता और फिर बच्चे भी पढ़ते "पनघट पर चल"। ये कहावत यूं ही नहीं बनी थी कि प्यासा ही कुएं के पास जाता है। लेकिन अब तो कोई प्यासा रहा ही नहीं। न सरकार और न जनता। घरों में चापाकल से मोटर और सरकार के वाटर सप्लाई से लेकर नल का जल। ऐसी ही कुछ अद्भुत और विचारणीय तस्वीर खुटौना प्रखंड के विभिन्न गांवों में देखने को मिलती है जहां कुओं की दुर्दशा मानव जीवन को चुनौती भरा संदेश देते हुए शायद कह रही हो कि एक दिन मेरी तरह तुम भी मिट जाओगे। तभी तो हल्की सी उमस भरी गर्मी में भी भू-जल स्तर इतना नीचे चला जाता है कि पानी के लिए लोग त्राहिमाम करने लगते हैं। बता दें कि खुटौना प्रखंड के लौकहा, ललमनियां, माधोपुर, मझौरा, चतुर्भुज पिपराही, परसाही, दुर्गीपट्टी, नहरी तथा खुटौना समेत अन्य जगहों को मिलाकर कुल 44 से अधिक कुएं हैं जिनमें से कुछ निजी और अधिकतर सार्वजनिक हैं। लेकिन इनकी हालत देखते बनती है। अधिकतर कुएं या तो सुख चुके हैं या फिर दबा दिए गए हैं। कुछ में सड़े-गले बदबूदार पानी हैं तो वहीं एक आध अभी भी संघर्ष में रहकर भी अपने जीवंत होने का परिचय दे रहे हैं। पहले लोग निजी खर्च पर भी कुआं बनाते थे लेकिन अब तो क्या कहना। कुआं भी तरस के कह रहा होगा मैंने तुम्हारे पुरखों की प्यास बुझाकर उनकी तड़प मिटाई है, कोई मुझे भी बचा लो।
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